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বায়োফ্লোক বই বাংলা ভাষা

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श्री विधि से धान की खेती

चावल गहनता  की प्रणाली (SRI) चावल उगाने की एक विधि है जो के मेडागास्कर के किसानों से अपनाई गई है। इस बिधि में बहुत कम बीज दर (5–6 किग्रा / हेक्टेयर) की आवश्यकता है जो मौजूदा का सिर्फ 10-20% है। पारंपरिक चावल उत्पादन में बीज दर 50-60 किग्रा /हेक्टेयर है । फसल भी बहुत कम पानी के साथ उगाई जाती है। SRI विधि की महत्वपूर्ण विशेषताएं: • 15 दिन पुराने पौधों की दो पत्ती अवस्था में रोपाई की जाती है। • 2–5  पौधों के झुरमुट की एक जगह पर एक पौधा ही लगया जाता है।   • रोपाई की दूरी 20 x 20 या 25 x 25 सेमी रखी जाती है। • पौधे की वनस्पति विकास के दौरान, मिट्टी को सिर्फ नम रखा जाता है, न कि पानी खड़ा किया जाता है। • रोपाई के 15 से 20 दिनों के बाद केवल एक निराई की आवश्यकता होती है। • फूलों की अवश्था के दौरान लगभग 3 सेमी पानी बनाए रखा जाता है। कटाई से 20 दिन पहले सिंचाई बंद कर दी जाती है। • रोपाई के दौरान वर्मीकम्पोस्ट @ 1000 किग्रा / हे अंकुर स्थापना में बहुत प्रभावी पाया गया है। रोपाई और खेती की विधि • दो पत्ती अवस्था में 15 दिन पुरानी पौध की रोपाई करें 20 सेमी x 20 सेमी के फासले पर। ह...

धान की जैविक खेती

जलवायु और मिट्टी आवश्यकता उष्णकटिबंधीय (tropical) जलवायु क्षेत्रों में चावल सबसे अच्छा बढ़ता है। हालांकि, यह उपोष्णकटिबंधीय( sub tropical) और समशीतोष्ण (temperate) जलवायु के तहत नम (humid) से उप-नम (sub-humid) क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाया जाता है। सभी प्रकार की मिट्टी में चावल की खेती की जाती है। उच्च तापमान, पर्याप्त वर्षा, उच्च आर्द्रता (humidity) और सिंचाई सुविधाएं के साथ चावल को किसी भी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। फसल मौसम और अवधि जलवायु और पानी की उपलब्धता के आधार पर चावल को तीनों मौसम यानी खरीफ, रबी और गर्मी उगाया जाता है। किस्मों के आधार पर फसल की अवधि 100 से 150 दिनों तक भिन्न होती है। उत्तरी और पश्चिमी भारत (J & K, हिमाचल प्रदेश, पंजाब,हरियाणा, उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान,महाराष्ट्र) चावल मुख्य रूप से खरीफ मौसम में उगाया जाता है, जबकि दक्षिणी और पूर्वी भारत में इसे पूरे साल उगाया जाता है, सभी तीन मौसम में अलग-अलग समय और अवधि के साथ | फसल का चक्रिकरण चावल आमतौर पर चावल-गेहूं, चावल-चावल, या चावल-फलियां रोटेशन में एक मोनोक्रॉप के रूप में उगाया जाता...

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की जानकारी

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को अगर आसान भाषा में समझें तो यह किसान और फसल के ख़रीददार के बीच का समझोता होता हैैl इसमें ख़रीदार किसान को फसल बोने के लिए कहता है और किसान से उस फसल की उपज को नियमत कीमत पर खरीदने का वायदा करता है l कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की कामयाब उदहारण   1.National seed corporation दुबारा किसानों से  बीज उत्पादन कराना l 2.चिप्स के लिए किसानों से आलू उत्पादन कराना पश्मीं बंगाल में l 3.पोल्ट्री फार्मिंग का 66% कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में आता है l इसमें सबसे बड़ी मुश्किल यह थी के फसल को बेचने के समय अगर फसल की कीमत कम होती थी तो खरीददार किसानों से कम कीमत पर फसल खरीदते थेl इस लिए केन्दर सरकार दुबारा इस पर अध्यादेश लाया गया है इस को तमिलनाडु की सरकार दुबारा सबसे पहले लागु किया गया है l यह कानून किसान , किसान उत्पादक कम्पनियाँ और खरीददार को क़ानूनी सहयता देता है इस से यह कॉन्ट्रैक्ट में किये गए वायदे से हट नहीं सकते l